ये हौसला तुझे महताब-ए-जाँ हुआ कैसे
कि ख़ुद को साए से मिन्हा किया बता कैसे
नज़र तो क्या कि ये मीना-ए-दिल भी ख़ाली है
लगेगा शहर में बाज़ार-ए-ख़ूँ-बहा कैसे
मुझे ख़बर है कि मौसम नहीं ये ख़्वाहिश का
मिरे लबों पे ये ठहरा है ज़ाइक़ा कैसे
ख़ुदाई नौहा-कुनाँ थी कि आज मिम्बर पे
ये तुझ को आया नज़र क्या मिरे सिवा कैसे
तअल्लुक़ात के तावीज़ भी गले में नहीं
मलाल देखने आया है रास्ता कैसे
क़फ़स में मेरी पनाहों को देख हैराँ था
कि मेरे दिल में था मक़्तल का ज़ाइचा कैसे
हवा से जैसे चराग़ों की लौ भड़कती है
बहुत दिनों में तुझे देख के हँसा कैसे
ग़ज़ल
ये हौसला तुझे महताब-ए-जाँ हुआ कैसे
किश्वर नाहीद

