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ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है | शाही शायरी
ye hum ko kaun si duniya ki dhun aawara rakhti hai

ग़ज़ल

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

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ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है
कि ख़ुद साबित-क़दम रह कर हमें सय्यारा रखती है

अगर बुझने लगें हम तो हवा-ए-शाम-ए-तन्हाई
किसी मेहराब में जा कर हमें दोबारा रखती है

चलो हम धूप जैसे लोग ही उस को निकाल आएँ
सुना है वो नदी तह में कोई मह-पारा रखती है

हमें किस काम पर मामूर करती है ये दुनिया भी
कि तर्सील-ए-ग़म-ए-दिल के लिए हरकारा रखती है

कभी सर फोड़ने देती नहीं दीवार से 'ताबिश'
ये क्या दीवानगी है जो हमें नाकारा रखती है