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ये दौर मोहब्बत का लहू चाट रहा है | शाही शायरी
ye daur mohabbat ka lahu chaT raha hai

ग़ज़ल

ये दौर मोहब्बत का लहू चाट रहा है

अनवर कैफ़ी

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ये दौर मोहब्बत का लहू चाट रहा है
इंसान का इंसान गला काट रहा है

देखो न हमें आज हिक़ारत कि नज़र से
यारो कभी अपना भी बड़ा ठाट रहा है

पहले भी मयस्सर न था मज़दूर को छप्पर
अब नाम पे दीवार के इक टाट रहा है

देखा है जिसे आप ने नफ़रत की नज़र से
नफ़रत की ख़लीजों को वही पाट रहा है

हैरान हूँ क्या हो गया उस शख़्स को 'अनवर'
जिस डाल पे बैठा है उसे काट रहा है