ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
कहते हैं कि रोते नहीं बीमार के आगे
फिर मौत का है सामना अल्लाह बचाए
फिर दिल लिए जाता है सितमगर के आगे
बिकने के लिए आप न बाज़ार में आए
भिजवा दिया यूसुफ़ को ख़रीदार के आगे
मुनइम को मुबारक ये नक़ीब और जिलौ-दार
अल्लाह ही अल्लाह है नादार के आगे
ज़िद करते हो क्यूँ तीर न पहुँचेंगे हदफ़ तक
अरमान हज़ारों हैं दिल-ए-ज़ार के आगे
सरगर्म-ए-सुख़न हूँ दिल-ए-वारफ़्ता से इस तरह
जैसे कोई बातें करे दीवार के आगे
ग़ज़ल
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
साक़िब लखनवी