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यक़ीन-ए-मोहकम का है सहारा यही अमल कारगर है प्यारे | शाही शायरी
yaqin-e-mohkam ka hai sahaara yahi amal kargar hai pyare

ग़ज़ल

यक़ीन-ए-मोहकम का है सहारा यही अमल कारगर है प्यारे

अर्श मलसियानी

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यक़ीन-ए-मोहकम का है सहारा यही अमल कारगर है प्यारे
इलाज-ए-दर्ज-ए-निहाँ यही है इसी दवा में असर है प्यारे

तिरी निगाहों में हैं समाए जमाल-ए-हस्ती जलाल-ए-मा'नी
न देख तू और की नज़र से तिरी नज़र मो'तबर है प्यारे

नहीं तिरी राह राह-ए-मुश्किल है रहबर-ए-राह ख़ुद तिरा दिल
तिरे क़दम में है तेरी मंज़िल तवील बे-शक सफ़र है प्यारे

न है हसीनों में कज-अदाई न ज़िंदगी में कोई बुराई
है नेकियों ही का घर ख़ुदाई अगर तू ख़ुद ख़ुद-निगर है प्यारे

तिरे ही दिल में है जल्वा-फ़रमा बुतों की सूरत ख़ुदा का जादू
यही है दैर और यही है का'बा यही मोहब्बत का घर है प्यारे

कहाँ छुपेगा वो माह-पैकर तू हो न मायूस-ए-दीद दम-भर
हों लाख पर्दे रुख़-ए-हसीं पर तिरी नज़र भी नज़र है प्यारे

हैं तेरे अशआ'र 'अर्श' ऐसे रुमूज़ हों ज़िंदगी के जैसे
तुझे न दें लोग दाद कैसे बड़ा ही तू नुक्ता-वर है प्यारे