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यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती | शाही शायरी
yahan baghair-fughan shab basar nahin hoti

ग़ज़ल

यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती

अहसन मारहरवी

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यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती
वहाँ असर नहीं होता ख़बर नहीं होती

ख़लिश जिगर में है दिल को ख़बर नहीं होती
चुभी है फाँस इधर से उधर नहीं होती

अबस ही कल के लिए इल्तिवा-ए-मश्क़-ए-ख़िराम
क़यामत आज ही क्यूँ फ़ित्ना-गर नहीं होती

जो उन से दूर है उस के लिए हैं चश्म-ब-राह
हम उन के पास हैं हम पर नज़र नहीं होती

अजल को रोकिए क्या कह के उन के आने तक
कि अब तो बात भी ऐ चारा-गर नहीं होती

वो आ गए हैं तो आँसू ज़रूर पोंछेंगे
अब आँख क्यूँ मिरी अश्कों से तर नहीं होती

कमाल-ए-बे-हुनरी से ग़नी हूँ मैं 'अहसन'
मुझे ज़रूरत-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं होती