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याँ के होने को मिसालों की ज़मीं चाहिए है | शाही शायरी
yan ke hone ko misalon ki zamin chahiye hai

ग़ज़ल

याँ के होने को मिसालों की ज़मीं चाहिए है

शाह हुसैन नहरी

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याँ के होने को मिसालों की ज़मीं चाहिए है
उस की हस्ती को ये तमसील नहीं चाहिए है

हर निशाँ उस का है दिल में भी है जल्वा उस का
ज़ाहिर-ए-दीदा की तस्कीं भी कहीं चाहिए है

जो यहाँ भी है वहाँ भी है वही है अच्छा
क्यूँ कहें उस को भी अच्छा जो यहीं चाहे है

यादें आबाद ज़मानों की हैं आबाद उस में
है ख़राबा पे उसे मुझ सा मकीं चाहिए है

कब समुंदर ने बुझाई है कोई प्यास यहाँ
शोर है 'शाह' ये पियाला ही नहीं चाहिए है