याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं
भूलने वाले कभी तुझ को भी याद आता हूँ मैं
एक धुँदला सा तसव्वुर है कि दिल भी था यहाँ
अब तो सीने में फ़क़त इक टीस सी पाता हूँ मैं
ओ वफ़ा-ना-आश्ना कब तक सुनूँ तेरा गिला
बे-वफ़ा कहते हैं तुझ को और शरमाता हूँ मैं
आरज़ूओं का शबाब और मर्ग-ए-हसरत हाए हाए
जब बहार आए गुलिस्ताँ में तो मुरझाता हूँ मैं
'हश्र' मेरी शेर-गोई है फ़क़त फ़रियाद-ए-शौक़
अपना ग़म दिल की ज़बाँ में दिल को समझाता हूँ मैं
ग़ज़ल
याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं
आग़ा हश्र काश्मीरी