याद में अपने यार-ए-जानी की
हम ने मर मर के ज़िंदगानी की
दोस्तों को अदू किया हम ने
कर के तारीफ़ यार-ए-जानी की
क्यूँ न रुस्वा करे ज़माने में
ये कहानी ग़म-ए-निहानी की
रूह होएगी हश्र में साहब
इक निशानी सरा-ए-फ़ानी की
ख़ाकसारी से बढ़ गया इंसाँ
अर्ज़ पर सैर आसमानी की
ज़र्द सूरत पे हिज्र में न हँसो
शरह है रंग-ए-ज़ाफ़रानी की
आज कल लखनऊ में ऐ 'अख़्तर'
धूम है तेरी ख़ुश-बयानी की
ग़ज़ल
याद में अपने यार-ए-जानी की
वाजिद अली शाह अख़्तर