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या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे | शाही शायरी
ya rab kahin se garmi-e-bazar bhej de

ग़ज़ल

या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे
दिल बेचता हूँ कोई ख़रीदार भेज दे

अपनी बिसात में तो यही दिल है मेरी जाँ
लेता नहीं तो क्या करूँ ऐ यार भेज दे

दावा जो बर्शगाल को आँखों से है मिरी
ऐसा कोई जो अब्र-ए-गुहर-बार भेज दे

देते हैं अक़्द-ए-हुस्न में आशिक़ उरूस-ए-जाँ
आता नहीं जो आप तो तलवार भेज दे

'सौदा' से ग़म-गुसार का था दिल ये तीं लिया
उस के एवज़ भला कोई ग़म-ख़्वार भेज दे