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वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ | शाही शायरी
wufur-e-shauq ki rangin hikayaten mat puchh

ग़ज़ल

वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ

अली सरदार जाफ़री

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वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ
लबों का प्यार निगह की शिकायतें मत पूछ

किसी निगाह की नस नस में तैरते निश्तर
वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत की राहतें मत पूछ

वो नीम-शब वो जवाँ हुस्न वो वुफ़ूर-ए-नियाज़
निगाह ओ दिल ने जो की हैं इबादतें मत पूछ

हुजूम-ए-ग़म में भी जीना सिखा दिया हम को
ग़म-ए-जहाँ की हैं क्या क्या इनायतें मत पूछ

ये सिर्फ़ एक क़यामत है चैन की करवट
दबी हैं दिल में हज़ारों क़यामतें मत पूछ

बस एक हर्फ़-ए-बग़ावत ज़बाँ से निकला था
शहीद हो गईं कितनी रिवायतें मत पूछ

अब आज क़िस्सा-ए-दारा-ओ-जम का क्या होगा
हमारे पास हैं अपनी हिकायतें मत पूछ

निशान-ए-हिटलरी-ओ-क़ैसरी नहीं मिलता
जो इब्रतों ने लिखी हैं इबारतें मत पूछ

नशात-ए-ज़ीस्त फ़क़त अहल-ए-ग़म की है मीरास
मिलेंगी और अभी कितनी दौलतें मत पूछ