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वो सर्दी से ठिठुरता है न गर्मी ही सताती है | शाही शायरी
wo sardi se TheThurta hai na garmi hi satati hai

ग़ज़ल

वो सर्दी से ठिठुरता है न गर्मी ही सताती है

मुसव्विर फ़िरोज़पुरी

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वो सर्दी से ठिठुरता है न गर्मी ही सताती है
ये मौसम हार जाते हैं ग़रीबी जीत जाती है

मिरे रहबर हटा चश्मा तुझे मंज़र दिखाता हूँ
ये टोली भूके बच्चों की ग़ज़ब थाली बजाती है

मिरे रब चाँद पूनम का ज़रा चौरस ही कर दे तू
गोलाई देखता हूँ मैं तो रोटी याद आती है

ये मंज़र देखता हूँ मैं तो आँखें डूब जाती हैं
वो नन्ही गोद सी गुड़िया किसी का बोझ उठाती है