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वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है | शाही शायरी
wo raqs kahan aur wo tab-o-tab kahan hai

ग़ज़ल

वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है

तनवीर अहमद अल्वी

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वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है
वो सज्दा-ए-शौक़ और वो मेहराब कहाँ है

है आबला-पाई ही तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा
सहरा-ए-लक़-ओ-दक़ है यहाँ आब कहाँ है

औराक़-ए-दिल-ओ-जाँ में हैं कुछ दाग़ ही बाक़ी
वो इश्क़-ओ-अक़ीदत का हसीं बाब कहाँ है

इक अश्क-ए-नदामत के सिवा कुछ भी नहीं है
पलकों पे सजाया हुआ वो ख़्वाब कहाँ है

अब दुर्द-ए-तह-ए-जाम है या तिश्ना-लबी है
सहबा वो कहाँ साग़र-ए-महताब कहाँ है

क्या टूट गए आप ही शबनम के वो धागे
वो प्यार का रेशम दिल-ए-बेताब कहाँ है

'तनवीर' रह-ए-ज़ीस्त में तन्हा ये सफ़र क्यूँ
वो लुत्फ़ कहाँ पुर्सिश-ए-अहबाब कहाँ है