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वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता | शाही शायरी
wo pas rah ke bhi mujh mein sama nahin sakta

ग़ज़ल

वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता

सलमान अख़्तर

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वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता
वो मुद्दतों न मिले दूर जा नहीं सकता

वो एक याद जो दिल से मिटी नहीं अब तक
वो एक नाम जो होंटों पे आ नहीं सकता

वो इक हँसी जो खनकती है अब भी कानों में
वो इक लतीफ़ा जो अब याद आ नहीं सकता

वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
वो इक ख़याल जिसे मैं भुला नहीं सकता

वो एक शेर जो मैं ने कहा नहीं अब तक
वो एक राज़ जिसे मैं छुपा नहीं सकता