EN اردو
वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे | शाही शायरी
wo naqsh-e-pa hain koi dusra chale to gire

ग़ज़ल

वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे

इक़बाल अशहर कुरेशी

;

वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे
तिरे क़दम पे तिरा आश्ना चले तो गिरे

मुझे है इल्म-ए-तख़य्युल की तेज़-गामी का
तिरे ख़याल में बैठा हुआ चले तो गिरे

न सोची बात जो तू ने वो लिख न जाऊँ कहीं
क़लम ये तेरे लिए सोचता चले तो गिरे

क़ुबूल कर लिया क़ब्रों ने सारी लाशों को
यहाँ निगाह कोई अब उठा चले तो गिरे

ये बे-ख़ुदी में सँभलना तो सहल है 'अख़्तर'
हमारी राह कोई पारसा चले तो गिरे