वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे
तिरे क़दम पे तिरा आश्ना चले तो गिरे
मुझे है इल्म-ए-तख़य्युल की तेज़-गामी का
तिरे ख़याल में बैठा हुआ चले तो गिरे
न सोची बात जो तू ने वो लिख न जाऊँ कहीं
क़लम ये तेरे लिए सोचता चले तो गिरे
क़ुबूल कर लिया क़ब्रों ने सारी लाशों को
यहाँ निगाह कोई अब उठा चले तो गिरे
ये बे-ख़ुदी में सँभलना तो सहल है 'अख़्तर'
हमारी राह कोई पारसा चले तो गिरे
ग़ज़ल
वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे
इक़बाल अशहर कुरेशी