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वो मेरे ज़ेहन पे इतना सवार हो गया था | शाही शायरी
wo mere zehn pe itna sawar ho gaya tha

ग़ज़ल

वो मेरे ज़ेहन पे इतना सवार हो गया था

नसीम अब्बासी

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वो मेरे ज़ेहन पे इतना सवार हो गया था
मैं कम-सिनी में जुनूँ का शिकार हो गया था

करेगा कौन तिरी वुसअतों का अंदाज़ा
जो हम-कनार हुआ बे-कनार हो गया था

तमाम उम्र फिर अपनी तलाश में गुज़री
मैं अपने आप से इक दिन फ़रार हो गया था

मुझे गँवा के लिया दिल ने सूझ-बूझ से काम
फ़ुज़ूल-ख़र्च किफ़ायत-शिआ'र हो गया था

भटक रहा था कोई सर-फिरी हवाओं में
फिर इस के बा'द सुपुर्द-ए-ग़ुबार हो गया था

मिली थी माँ की ग़ुलामी से ये सर-अफ़राज़ी
कि बादशाहों में मेरा शुमार हो गया था

मुझे भी अच्छे बुरे की शनाख़्त हो गई थी
'नसीम' जिन दिनों बे-रोज़गार हो गया था