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वो मेरे हाल-ए-दिल से इस क़दर भी बे-ख़बर होगा | शाही शायरी
wo mere haal-e-dil se is qadar bhi be-KHabar hoga

ग़ज़ल

वो मेरे हाल-ए-दिल से इस क़दर भी बे-ख़बर होगा

संदीप कोल नादिम

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वो मेरे हाल-ए-दिल से इस क़दर भी बे-ख़बर होगा
ख़बर क्या थी कि यूँ बेहिस वो मेरा हम-सफ़र होगा

कि हम तो उम्र भर लड़ने की ख़्वाहिश ले के आए थे
ख़बर क्या थी कि वक़्त-ए-फ़ैसला यूँ मुख़्तसर होगा

चराग़-ए-ग़म जलाया था उजालों की उमीदों में
ख़बर क्या थी मिरी कोशिश का उल्टा ही असर होगा

दबे शोलों को भड़काया कि उन का आशियाँ सुलगे
ख़बर क्या थी जलेगा जो मिरा अपना ही घर होगा

वो जब रुख़्सत हुआ उस को पुकारा भी नहीं हम ने
ख़बर क्या थी की पछतावा हमें फिर उम्र भर होगा

जहाँ मेरी हर इक हसरत हक़ीक़त में बदल जाए
ख़बर क्या थी मिरे ख़्वाबों का वो साहिल किधर होगा

जिसे हम ढूँढते फिरते थे ख़्वाबों में ख़यालों में
ख़बर क्या थी वो सदियों से हमारा मुंतज़िर होगा