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वो क्या ज़िंदगी जिस में जोशिश नहीं | शाही शायरी
wo kya zindagi jis mein joshash nahin

ग़ज़ल

वो क्या ज़िंदगी जिस में जोशिश नहीं

कृष्ण मोहन

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वो क्या ज़िंदगी जिस में जोशिश नहीं
वो क्या आरज़ू जिस में काविश नहीं

जुनूँ आइना-दार-ए-सोज़-ए-दरूँ
जुनूँ पर ख़ुशी की नवाज़िश नहीं

मुक़द्दर का मरहून-ए-मिन्नत है ये
तिरा मर्तबा वजह-ए-नाज़िश नहीं

हक़ीक़त का अक्कास मेरा कलाम
तसन्नो नहीं इस में कोशिश नहीं

ये इज़हार-ए-सादा है जज़्बात का
कमाल-ए-हुनर की नुमाइश नहीं

ज़माने से हूँ बे-नियाज़ इस क़दर
सताइश की भी दिल में ख़्वाहिश नहीं

ये क्या हो गया तेरे मक्तूब में
तअल्लुक़ का रंग-ए-निगारिश नहीं

उसे मिल सके कामयाबी कहाँ
मदद-गार जिस की सिफ़ारिश नहीं

वो बे-बाक आज़ाद-गुफ़्तार है
कभी 'कृष्ण' मोहन को बंदिश नहीं