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वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए | शाही शायरी
wo jo bhi baKHshen wo inam le liya jae

ग़ज़ल

वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

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वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए
मलाल ही दिल-ए-नाकाम ले लिया जाए

बड़ा मज़ा हमें इस बंदगी में हासिल हो
जो सुब्ह ओ शाम तिरा नाम ले लिया जाए

रहे न ताएर-ए-सिदरा भी अपनी ज़द से दूर
उसे भी आओ तह-ए-दाम ले लिया जाए

हमारी जान से ग़म ने लिए हज़ारों काम
हमारी ख़ाक से भी काम ले लिया जाए

मुरव्वतों से अदावत बदल तो सकती है
अगर ख़ुलूस से कुछ काम ले लिया जाए

ये चश्म-ए-मस्त तिरी साक़ी-ए-हयात-अफ़रोज़
ये तुझ से क्यूँ न तिरा जाम ले लिया जाए

बड़ा कमाल हम इस बात में समझते हैं
बख़ील लोगों से इनआम ले लिया जाए

सज़ा से पहले ये हाकिम को चाहिए ऐ 'रम्ज़'
बयान-ए-मौरीद-ए-इलज़ाम ले लिया जाए