वो जो बे-साख़्ता हँसने की अदा थी तेरी
तुझ को मा'लूम नहीं वो ही दवा थी तेरी
हिज्र रातों में उसे ओढ़ के सो जाता था
पास मेरे जो उदासी की रिदा थी तेरी
तेरे इक दोस्त ने पूछा था ये रो कर मुझ से
है क़सम तुझ को बता दे कि वो क्या थी तेरी
बद-दुआ' अपने लिए ख़ूब करी थी मैं ने
हाँ मगर राह में हाइल जो दुआ थी तेरी
तेरी आवाज़ पे लौट आए थे तेरी जानिब
पूछना कुछ भी नहीं था कि रज़ा थी तेरी

ग़ज़ल
वो जो बे-साख़्ता हँसने की अदा थी तेरी
ज़िया ज़मीर