वो जितनी ख़ुद-नुमाई कर रहा है
ख़ुद अपनी जग-हँसाई कर रहा है
ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया
समुंदर की बुराई कर रहा है
ज़रा हम ने ज़बाँ क्या बंद कर ली
ज़माना लब-कुशाई कर रहा है
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ग़ज़ल
वो जितनी ख़ुद-नुमाई कर रहा है
नईम अख़्तर ख़ादिमी
ग़ज़ल
नईम अख़्तर ख़ादिमी
वो जितनी ख़ुद-नुमाई कर रहा है
ख़ुद अपनी जग-हँसाई कर रहा है
ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया
समुंदर की बुराई कर रहा है
ज़रा हम ने ज़बाँ क्या बंद कर ली
ज़माना लब-कुशाई कर रहा है