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वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें | शाही शायरी
wo jis ki justuju-e-did mein pathra gain aankhen

ग़ज़ल

वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें

वासिफ़ देहलवी

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वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें
नज़र के सामने इक दिन सर-ए-महफ़िल भी आएगा

ये क्या शिकवा कि कोई चाहने वाला नहीं मिलता
करम पर तुम जो हो माइल कोई साइल भी आएगा

ये तूफ़ाँ-ख़ेज़ मौजें ये थपेड़े बाद ओ बाराँ के
सफ़ीने को यूँही कहते रहो साहिल भी आएगा

न हो मायूस हमदम पाँव में लग़्ज़िश न आ जाए
नज़र कुछ दूर चल कर जादा-ए-मंज़िल भी आएगा

मोहब्बत अपने दीवानों को वीराँ रख नहीं सकती
किसी की जुस्तुजू में एक दिन महमिल भी आएगा

ये महफ़िल आज ना-अहलों से जो मामूर है 'वासिफ़'
उसी महफ़िल में कोई जौहर-ए-क़ाबिल भी आएगा