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वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका | शाही शायरी
wo jalwa tur par jo dikhaya na ja saka

ग़ज़ल

वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका

वासिफ़ देहलवी

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वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका
आख़िर यही हुआ कि छुपाया न जा सका

आते ही उन के दश्त ओ जबल मुस्कुरा उठे
ऐसे में अपना हाल सुनाया न जा सका

गर्दूं भी इज़्तिराब-ए-अज़ीज़ाँ से हिल गया
सोए कुछ ऐसे हम कि जगाया न जा सका

दामन के दाग़ अश्क-ए-नदामत ने धो दिए
लेकिन ये दिल का दाग़ मिटाया न जा सका

कितनी घटाएँ आईं बरस कर गुज़र गईं
शोला हमारे दिल का बुझाया न जा सका

बातें हज़ार यूँ तो हरीफ़ों की छुप गईं
'वासिफ़' का राज़ था जो छुपाया न जा सका