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वो इज़्तिराब शब-ए-इंतिज़ार होता है | शाही शायरी
wo iztirab shab-e-intizar hota hai

ग़ज़ल

वो इज़्तिराब शब-ए-इंतिज़ार होता है

जमीला ख़ातून तस्नीम

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वो इज़्तिराब शब-ए-इंतिज़ार होता है
कि माहताब कलेजे के पार होता है

फ़सुर्दा आप न हों देख कर मिरा दामाँ
ये बद-नसीब यूँही तार तार होता है

नहीं कुछ और मोहब्बत की चोट है हमदम
ये दर्द दिल में कहीं बार बार होता है

तिरी तलाश से ग़ाफ़िल नहीं तिरा वहशी
ज़वाल-ए-होश में भी होशियार होता है

हो उन का वादा-ए-फ़र्दा ग़लत सही लेकिन
मैं क्या करूँ कि मुझे ए'तिबार होता है