वो है हैरत-फ़ज़ा-ए-चश्म-ए-मा'नी सब नज़ारों में
तड़प बिजली में उस की इज़्तिराब उस का सितारों में
मदद ऐ इज़्तिराब-ए-शौक़ तू जान-ए-तमन्ना है
निकल ऐ सब्र तेरा काम क्या है बे-क़रारों में
ये किस का नाम ले कर जान दी बीमार-ए-उल्फ़त ने
ये किस ज़ालिम का चर्चा रह गया तीमार-दारों में
ज़रा सी छेड़ भी काफ़ी है मिज़राब-ए-मोहब्बत की
कि नग़्मे मुज़्तरिब हैं बरबत-ए-हस्ती के तारों में
कहाँ का शग़्ल अब तो दौर है खूँ-नाबा-ए-ग़म का
वही क़िस्मत में थी जो पी चुके अगली बहारों में
ग़ज़ल
वो है हैरत-फ़ज़ा-ए-चश्म-ए-मा'नी सब नज़ारों में
अब्दुल मजीद सालिक