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वो डर के आगे निकल जाएगा अगर यूँही | शाही शायरी
wo Dar ke aage nikal jaega agar yunhi

ग़ज़ल

वो डर के आगे निकल जाएगा अगर यूँही

शारिब मौरान्वी

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वो डर के आगे निकल जाएगा अगर यूँही
तो जीत पाँव को चूमेगी उम्र भर यूँही

बरहना-पा मिरी साँसें रगों के नेज़ों पर
करेंगी कैसे भला रक़्स उम्र भर यूँही

सरों पे अपने तमाज़त का बोझ उठाए हुए
ये कौन महव-ए-सफ़र है डगर डगर यूँही

कि जैसे प्यास से लब जल रहे हों पानी के
शिकम की आग से जलती है दोपहर यूँही