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वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे | शाही शायरी
wo aag hun ki nahin chain ek aan mujhe

ग़ज़ल

वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

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वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
जो दिन गया तो मिली रात की कमान मुझे

वो कौन है कि जिसे आसमाँ में ढूँडता हूँ
पलट के देखता क्यूँ है ये आसमान मुझे

ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
वो आँसुओं के समुंदर के दरमियान मुझे

यहीं पे छोड़ गया था उसे यहीं होगा
सुकूत-ए-ख़्वाब है आवाज़ का निशान मुझे

वो मुंतक़िम हूँ कि शोलों का खेल खेलता हूँ
मिरी कमीनगी देती है दास्तान मुझे

मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
मैं बेवफ़ा हूँ मगर बे-ख़बर न जान मुझे