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वक़्त के इंतिज़ार में वो है | शाही शायरी
waqt ke intizar mein wo hai

ग़ज़ल

वक़्त के इंतिज़ार में वो है

राही फ़िदाई

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वक़्त के इंतिज़ार में वो है
जुस्तुजू-ए-शिकार में वो है

सीना-ए-राज़दार ही में नहीं
दीदा-ए-आश्कार में वो है

आईना साफ़ हो तो देख उसे
नक़्शा-ए-दिल-फ़िगार में वो है

उस के क़ब्ज़े में काएनात सही
फ़ुक़रा की क़तार में वो है

सर पे दस्तार-ए-फ़ज़ल है लेकिन
जुब्बा-ए-तार-तार में वो है

बे-कराँ ज़ेहन ओ दिल की है वुसअत
जिस्म-ओ-जाँ के हिसार में वो है

उस की चारों तरफ़ किताबें हैं
हल्क़ा-ए-ग़म-गुसार में वो है

पेश-ए-ज़ालिम सदा-ए-हक़ यानी
नरग़ा-ए-सद-हज़ार में वो है

क़िला-ए-बे-बसर में तुम महफ़ूज़
ख़ुद-कलामी के ग़ार में वो है

ख़ाक तुम पा सकोगे ख़ाक उसे
आब ओ बाद ओ शरार में वो है

लम्हा-हा-ए-सुकूँ में उस की तलाश
साअत-ए-इज़्तिरार में वो है

पैरवी उस की है अबस 'राही'
ख़ुद ही राह-ए-फ़रार में वो है