वक़्त का सिलसिला नहीं रुकता
लाख रोको ज़रा नहीं रुकता
ये ज़मीं है ख़ुदाओं का मदफ़न
आदम-ए-कज-अदा नहीं रुकता
इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँ
कोई भी रास्ता नहीं रुकता
रफ़्तगाँ आईना दिखाता है
कुछ भी हो इर्तिक़ा नहीं रुकता
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ग़ज़ल
वक़्त का सिलसिला नहीं रुकता
नईम जर्रार अहमद