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वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को | शाही शायरी
waqt-e-tazin jo dikhae wo safa sine ko

ग़ज़ल

वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को

शाद लखनवी

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वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को
मुँह दिखाने की न फिर जा रहे आईने को

ग़म नहीं महफ़िल-ए-जानाँ में नहीं सद्र-नशीं
उस ने सीने में तो जावे है मिरे कीने को

ऐ सनम तुझ को जो पहुँचा वो ख़ुदा को पहुँचा
ज़ीना-ए-अर्श समझता हूँ तिरे ज़ीने को

शाल-ए-शाही से ज़ियादा है मुझे कमली-ए-फ़क़्र
जानता पश्म बराबर हूँ मैं पश़्मीने को

हम वो हातिम हैं कि जो सूरत-ए-क़ारून ऐ 'शाद'
साथ ले जाएँगे ज़र बाँट के गंजीने को