वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को
मुँह दिखाने की न फिर जा रहे आईने को
ग़म नहीं महफ़िल-ए-जानाँ में नहीं सद्र-नशीं
उस ने सीने में तो जावे है मिरे कीने को
ऐ सनम तुझ को जो पहुँचा वो ख़ुदा को पहुँचा
ज़ीना-ए-अर्श समझता हूँ तिरे ज़ीने को
शाल-ए-शाही से ज़ियादा है मुझे कमली-ए-फ़क़्र
जानता पश्म बराबर हूँ मैं पश़्मीने को
हम वो हातिम हैं कि जो सूरत-ए-क़ारून ऐ 'शाद'
साथ ले जाएँगे ज़र बाँट के गंजीने को
ग़ज़ल
वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को
शाद लखनवी