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वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़ | शाही शायरी
wahm jaisi shukuk jaisi chiz

ग़ज़ल

वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़

सरदार सलीम

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वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़
उम्र है भूल-चूक जैसी चीज़

कैसे रक्खें ज़मीर को महफ़ूज़
पेट में ले के भूक जैसी चीज़

घोल दी है ग़ज़ल के लहजे में
मैं ने कोयल की कूक जैसी चीज़

दर्द बन कर तिरी जुदाई का
दिल में उठती है हूक जैसी चीज़

काश होती हसीन लोगों में
कोई हुस्न-ए-सुलूक जैसी चीज़

मस्लहत की बिना पे लोग 'सलीम'
चाट लेते हैं थूक जैसी चीज़