वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा
उसी की सम्त एक सब्ज़ साहिल पे घर था मेरा
मैं इस ज़मीं पर बुरीदा बाज़ू सिसक रहा हूँ
जो उड़ रहा था हवा में वो एक पर था मेरा
वो हाथ मेरे जिन्हों ने तलवार सौंत ली थी
जो ख़ाक ओ ख़ूँ में लुथड़ गया था वो सर था मेरा
ज़मीं यहाँ से वहाँ तलक सब्ज़ हो रही थी
मगर जो बे-बर्ग-ओ-बर खड़ा था शजर था मेरा
वहाँ के घर तो फ़ना ने ख़ामोश कर दिए थे
अजीब सुनसान बस्तियों से गुज़र था मेरा

ग़ज़ल
वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा
सिराज मुनीर