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वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते | शाही शायरी
wafa kya kar nahin sakte hain wo lekin nahin karte

ग़ज़ल

वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

मुज़्तर ख़ैराबादी

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वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
कहा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

मसीहाई का दावा और बीमारों से ये ग़फ़लत
दवा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

रक़ीबों पर अदू पर ग़ैर पर चर्ख़-ए-सितमगर पर
जफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

कभी दाद-ए-मोहब्बत दे के हक़ मेरी वफ़ाओं का
अदा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

ज़कात-ए-हुस्न दे कर अपने कूचे के गदाओं का
भला क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

दिल-ए-'मुज़्तर' को क़ैद-ए-दाम-ए-गेसू-ए-परेशाँ से
रिहा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते