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वापस जो नहीं आएगा में वो सफ़री हूँ | शाही शायरी
wapas jo nahin aaega mein wo safari hun

ग़ज़ल

वापस जो नहीं आएगा में वो सफ़री हूँ

जर्रार छौलिसी

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वापस जो नहीं आएगा में वो सफ़री हूँ
ऐ दोस्त गले लग कि चराग़-ए-सहरी हूँ

ऐ हुस्न ये अंदाज़-ओ-अदा तुझ में कहाँ थे
मैं तेरे लिए आईना-ए-इश्वा-गरी हूँ

बढ़ती हुई तहरीक-ए-सियासत मुझे समझो
एलान-ए-बग़ावत पए बेदाद-गरी हूँ

दुनिया के लिए जो है उजालों का पयम्बर
ज़ुल्मत-कदा-ए-शब में वो नज्म-ए-सहरी हूँ

रंगीनी-ओ-ख़ुश-पैरहनी है मिरे दम से
गुलशन में कली तुम में नसीम-ए-सहरी हूँ

हैरत से न क्यूँ देखे मुझे सारा ज़माना
पर्वरदा-ए-आग़ोश-ए-कमाल-ए-बशरी हूँ

तुम भी हो अदाओं की कशाकश में गिरफ़्तार
क्या फ़िक्र जो मैं क़ैदी-ए-आशुफ़्ता-सरी हूँ