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वाइज़ तू अगर उन के कूचे से गुज़र जाए | शाही शायरी
waiz tu agar un ke kuche se guzar jae

ग़ज़ल

वाइज़ तू अगर उन के कूचे से गुज़र जाए

दानिश अलीगढ़ी

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वाइज़ तू अगर उन के कूचे से गुज़र जाए
फ़िरदौस का मंज़र भी नज़रों से उतर जाए

रूदाद-ए-शब-ए-ग़म यूँ डरता हूँ सुनाने से
महफ़िल में कहीं उन की सूरत न उतर जाए

इक वादा-ए-फ़र्दा की उम्मीद पे ज़िंदा हूँ
ऐ काश किसी सूरत ये रात गुज़र जाए

काबे ही के रस्ते में मय-ख़ाना भी पड़ता है
उलझन में ये रह-रौ है जाए तो किधर जाए

तुम उन से मिलो 'दानिश' ये ध्यान रहे लेकिन
ख़ुद्दारी-ए-फ़ितरत का एहसास न मर जाए