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उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले | शाही शायरी
uTha ke naz se daman bhala kidhar ko chale

ग़ज़ल

उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले
इधर तो देखिए बहर-ए-ख़ुदा किधर को चले

मिरी निगाहों में दोनों जहाँ हुए तारीक
ये आप खोल के ज़ुल्फ़-ए-दोता किधर को चले

अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की
उठो न पहलू से ठहरो ज़रा किधर को चले

ख़फ़ा हो किस पे भंवें क्यूँ चढ़ी हैं ख़ैर तो है
ये आप तेग़ पे धर कर जिला किधर को चले

मुसाफ़िरान-ए-अदम कुछ कहो अज़ीज़ों से
अभी तो बैठे थे है है भला किधर को चले

चढ़ी हैं तेवरियाँ कुछ है मिज़ा भी जुम्बिश में
ख़ुदा ही जाने ये तेग़-ए-अदा किधर को चले

गया जो मैं कहीं भूले से उन के कूचे में
तो हँस के कहने लगे हैं 'रसा' किधर को चले