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उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ | शाही शायरी
use malum hai main sar-phira hun

ग़ज़ल

उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ

फ़ज़्ल ताबिश

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उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ
मगर ख़ुश है कि उस को चाहता हूँ

ये बस्ती कब दरिंदों से थी ख़ाली
मैं फिर भी ठीक लोगों में रहा हूँ

जो चाहे वो मुझे बे-दाम ले ले
ख़रीदारों के हाथों कम बिका हूँ

तिरी चाहत बहाना है यक़ीं कर
ब-हर सूरत मैं ख़ुद को चाहता हूँ

ज़रा सुन बे-नियाज़-ए-लम्स सुन ले
मैं तुझ को छू के ख़ुद को भूलता हूँ

कहाँ तोड़ा है मैं ने शाख़ से गुल
मैं शाख़-ए-गुल पे गुल को मानता हूँ