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उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा | शाही शायरी
us pe kya guzregi waqt marg andaza laga

ग़ज़ल

उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा

आसी फ़ाईकी

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उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा
मुंतशिर हस्ती का अपनी जिस को शीराज़ा लगा

औलिया-अल्लाह की चौखट के भी आदाब हैं
सर उठा कर जो भी आया उस को दरवाज़ा लगा

नूर की चादर तनी है यूँ फ़ज़ा-ए-दहर पर
जैसे तारे तोड़ने को दस्त-ए-ख़म्याज़ा लगा

जाने किस अंदाज़ से उस शोख़ ने डाली नज़र
जो पुराना ज़ख़्म था वो भी हमें ताज़ा लगा

मय-कदे का एक ही दम में बदल जाए निज़ाम
सू-ए-मय-ख़ाना भी 'आसी' ऐसा आवाज़ा लगा