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उस ने अपना लिया तो ठहरा मैं | शाही शायरी
usne apna liya to Thahra main

ग़ज़ल

उस ने अपना लिया तो ठहरा मैं

इज़हार वारसी

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उस ने अपना लिया तो ठहरा मैं
वो समुंदर है और दरिया मैं

उस की वुसअ'त में वुसअतें मेरी
उस की गहराइयों में गहरा मैं

संग बरसे कि फूल मत पूछो
टूटना था मुझे सो टूटा मैं

हम-नशीं क्या जो हम-ख़याल नहीं
अंजुमन अंजुमन हूँ तन्हा मैं

रब्त-ए-गुफ़्त-ओ-शुनीद हो तो खुले
लोग गूँगे हैं या हूँ बहरा मैं

अब न जज़्बा न आरज़ू न उमीद
बिन दिवानों का एक सहरा मैं

याद रखना ही ना-गुज़ीर है क्यूँ
कभी तुझ को भुला भी सकता मैं