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उस की नज़र का मुझ पे कुछ ऐसा असर हुआ | शाही शायरी
uski nazar ka mujh pe kuchh aisa asar hua

ग़ज़ल

उस की नज़र का मुझ पे कुछ ऐसा असर हुआ

बशीर फ़ारूक़ी

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उस की नज़र का मुझ पे कुछ ऐसा असर हुआ
दिल था सदफ़ मिसाल ब-रंग-ए-गुहर हुआ

वो शोख़ियाँ थीं और न वो रंग-रूप था
कल मैं बहुत उदास उसे देख कर हुआ

ईसार और वफ़ा की मिरे दास्ताँ ये है
जब भी वतन पे वार हुए मैं सिपर हुआ

वो हादिसा तो कोई बड़ा हादिसा न था
ये और बात दिल पे ज़ियादा असर हुआ

ऐसा भी एक दर है इसी काएनात में
उस दर का जो फ़क़ीर हुआ ताजवर हुआ

अब जा के मुझ को सर्द शबिस्ताँ हुआ नसीब
बरसों तमाम जिस्म पसीने में तर हुआ

दहशत-ज़दा फ़ज़ाओं से वो बे-नियाज़ था
जब उस का घर जला है तो उस पर असर हुआ

याद आ गई थी मुझ को शहीद-ए-वफ़ा की प्यास
दरिया को देख कर जो मिरा दिल शरर हुआ

पत्थर भी फेंकते कोई आता नहीं इधर
बूढे शजर की तरह जो मैं बे-समर हुआ

जिस दिन मिरी ग़ज़ल ने छुए उस के लब 'बशीर'
उस दिन मिरी ग़ज़ल का सफ़र मो'तबर हुआ