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उस के अपने दरमियाँ इस्तादा इक दीवार मैं | शाही शायरी
uske apne darmiyan istada ek diwar main

ग़ज़ल

उस के अपने दरमियाँ इस्तादा इक दीवार मैं

जावेद नदीम

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उस के अपने दरमियाँ इस्तादा इक दीवार मैं
एक दश्त-ए-शादमानी उस में इक आज़ार मैं

मैं नहीं था तू ही था आलम में लेकिन तेरे ब'अद
ऐ ख़ुदा-ए-इज़्ज़-ओ-जल तेरा हुआ इज़हार मैं

शम्अ से है नूर जैसा तेरा मेरा इंसिलाक
वर्ना तू बहती हवा है फूल की महकार मैं

बख़्त की साज़िश कहूँ या फिर मशिय्यत ग़ैब की
तीर-ज़न कोई भी हो लेकिन हदफ़ हर बार मैं

कल तलक उस का रहा था दिल को मेरे इश्तियाक़
आज वो नज़दीक है पर उस से हूँ बेज़ार मैं

इक न इक दिन तो मुसख़्ख़र उस को होना है 'नदीम'
वो ख़लाओं का मकीं है नूर की रफ़्तार मैं