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उस का नक़्शा एक बे-तरतीब अफ़्साने का था | शाही शायरी
us ka naqsha ek be-tartib afsane ka tha

ग़ज़ल

उस का नक़्शा एक बे-तरतीब अफ़्साने का था

मुनीर नियाज़ी

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उस का नक़्शा एक बे-तरतीब अफ़्साने का था
ये तमाशा था या कोई ख़्वाब दीवाने का था

सारे किरदारों में बे-रिश्ता तअ'ल्लुक़ था कोई
उन की बे-होशी में ग़म सा होश आ जाने का था

इश्क़ क्या हम ने किया आवारगी के अहद में
इक जतन बेचैनियों से दिल को बहलाने का था

ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
शौक़ लेकिन दिल में वापस लौट कर आने का था

ले गया दिल को जो उस महफ़िल की शब मैं ऐ 'मुनीर'
उस हसीं का बज़्म में अंदाज़ शरमाने का था