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उस गली से मिरे गुज़रने तक | शाही शायरी
us gali se mere guzarne tak

ग़ज़ल

उस गली से मिरे गुज़रने तक

आरिफ़ इमाम

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उस गली से मिरे गुज़रने तक
सब तमाशा है मेरे मरने तक

तू मिरी जान रक़्स में रहियो
गर्दिश-ए-कुन-फ़काँ ठहरने तक

वसवसों से भरा हुआ था दिल
उस की चौखट पे सर को धरने तक

कितने सहरा उतर गए मुझ में
इक सुबू आरज़ू का भरने तक

कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
रक़्स करने से सज्दा करने तक

ख़ून कितना बहा था मक़्तल में
मेरी आँखों में ख़ून उतरने तक