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उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर | शाही शायरी
un ko ruswa mujhe KHarab na kar

ग़ज़ल

उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर

हसरत मोहानी

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उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
ऐ दिल इतना भी इज़्तिराब न कर

आमद-ए-यार की उम्मीद न छोड़
देख ऐ आँख मैल-ए-ख़्वाब न कर

मिल ही रहती है मय-परस्त को मय
फ़िक्र-ए-नायाबी-ए-शराब न कर

नासेहा हम करेंगे शरह-ए-जुनूँ
दिल-ए-दीवाना से ख़िताब न कर

शौक़ यारों का बे-शुमार नहीं
सितम ऐ दोस्त बे-हिसाब न कर

दिल को मस्त-ए-ख़याल-ए-यार बना
लब को आलूदा-ए-शराब न कर

रख बहर-हाल शुग़्ल-ए-मय 'हसरत'
इस में परवा-ए-शेख़-ओ-शाब न कर