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उन को मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से भी गिला रह जाएगा | शाही शायरी
un ko mere zabt-e-gham se bhi gila rah jaega

ग़ज़ल

उन को मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से भी गिला रह जाएगा

परवीन मिर्ज़ा

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उन को मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से भी गिला रह जाएगा
मुश्किलें जब ख़त्म होंगी हौसला रह जाएगा

रफ़्ता रफ़्ता दिल भी ठहरा आँख से आँसू रुके
हम ये समझे थे कि ये ग़म जान ले कर जाएगा

एक इक कर के ज़मीं से सब गले मिल जाएँगे
जाने-पहचानों से रिश्ता याद का रह जाएगा

मंज़िलों की ख़्वाहिशें जब तोड़ देंगी दिल में दम
जाने वालों के लिए बस रास्ता रह जाएगा

आप की आँखों में उतरा है तो उजला हो गया
क्या ख़बर थी अक्स मेरा आइना हो जाएगा

निस्बतें हम से ज़मीं की छिन गईं 'परवीं' तो क्या
आसमानों से हमारा राब्ता रह जाएगा