EN اردو
उजले मोती हम ने माँगे थे किसी से थाल भर | शाही शायरी
ujle moti humne mange the kisi se thaal bhar

ग़ज़ल

उजले मोती हम ने माँगे थे किसी से थाल भर

शाहिद मीर

;

उजले मोती हम ने माँगे थे किसी से थाल भर
और उस ने दे दिए आँसू हमें रुमाल भर

जिस क़दर पौदे खड़े थे रह गए हैं डाल भर
धूप ने फिर भी रवय्ये को न बदला बाल भर

यूँ लगा आकाश जैसे मुट्ठियों में भर लिया
मेरे क़ब्ज़े में परिंदे आ गए जब जाल भर

उस की आँखों का बयाँ उस के सिवा क्या कीजिए
वुसअ'तें आकाश सी गहराइयाँ पाताल भर

छोड़ आए जब से हम कॉलेज की 'शाहिद' नौकरी
छुट्टियों के मुंतज़िर रहने लगे हैं साल भर