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उदास शाम की तन्हाइयों में जलता हुआ | शाही शायरी
udas sham ki tanhaiyon mein jalta hua

ग़ज़ल

उदास शाम की तन्हाइयों में जलता हुआ

रफ़ीक़ ख़याल

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उदास शाम की तन्हाइयों में जलता हुआ
वो काश आए कभी मेरे पास चलता हुआ

शब-ए-फ़िराक़ ने मिस्मार सारे ख़्वाब किए
कोई तो मुज़्दा सुनाए ये दिन निकलता हुआ

है क्या अजब कि कभी चाँद भी अँधेरों में
सुकूँ तलाश करे ज़ाविए बदलता हुआ

मिरे मसीहा ख़ुदा आज तेरा रक्खे भरम
नज़र मुझे नहीं आता ये जी बहलता हुआ

मैं रौशनी के नगर में पड़ाव ख़ाक करूँ
डरा रहा है मुझे अपना साया ढलता हुआ