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टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में | शाही शायरी
TuTa phuTa sahi ehsas-e-ana hai mujh mein

ग़ज़ल

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

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टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में
ऐसा लगता है कोई और छुपा है मुझ में

किर्चियाँ शीशे की पैकर में निहाँ हैं मेरे
अक्स-दर-अक्स कोई संग-नुमा है मुझ में

अब वो शोरीदा-सरी है न वो जज़्बों की सदा
बस उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़ एक ख़ला है मुझ में

ख़्वाब-दर-ख़्वाब मिरा फूलों की वादी का सफ़र
आँख खुल जाए तो इक दश्त-ए-बला है मुझ में

सतवत-ए-जब्र वही रंग की दीवार वही
एक एहसास है जो मुझ से सिवा है मुझ में

हर नफ़स मेरा सुलगते हुए ख़्वाबों का धुआँ
आरज़ूओं का कोई शहर जला है मुझ में

सुनता रहता हूँ मैं मज़लूम की चीख़ें भी 'सरूप'
या कि पैकर किसी क़ातिल का चुभा है मुझ में