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तूफ़ाँ समझ लिया कभी साहिल बना लिया | शाही शायरी
tufan samajh liya kabhi sahil bana liya

ग़ज़ल

तूफ़ाँ समझ लिया कभी साहिल बना लिया

ख़ालिद महमूद ज़की

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तूफ़ाँ समझ लिया कभी साहिल बना लिया
ऐ शौक़-ए-बे-अमाँ तुझे मंज़िल बना लिया

अब जिस्म-ओ-जान-ए-नाज़ पे टूटें क़यामतें
उस से गुरेज़ क्या जिसे हासिल बना लिया

कुछ इंतिहा-ए-शौक़ के थे सिलसिले अजब
मुश्किल नहीं था जो उसे मुश्किल बना लिया

जिस दिन कि इंतिज़ार था करना नहीं किया
ख़ुद को मिज़ाज-ए-यार के क़ाबिल बना लिया

उस राह पर चले जो ज़माने से हट के थी
और कार-ए-ज़िंदगी तुझे मुश्किल बना लिया

छोड़ा नहीं बनाए बना ज़िम्मे जो भी था
फिर भी नहीं कुछ ऐसा कि बे-दिल बना लिया

जब चाहा ऐ समय तुझे रौनक़ से काट कर
ख़लवत-नशीनी-ए-शब-ए-महफ़िल बना लिया

पानी ही क्या हवा भी नहीं ए'तिबार की
ये जान कर ठिकाना सर-ए-गिल बना लिया