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तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर | शाही शायरी
tufan koi nazar mein na dariya ubaal par

ग़ज़ल

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

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तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर
वो कौन थे जो बह गए पर्बत की ढाल पर

करने चली थी अक़्ल जुनूँ से मुबाहिसे
पत्थर के बुत में ढल गई पहले सवाल पर

मेरा ख़याल है कि उसे भी नहीं सबात
जाँ दे रहा है सारा जहाँ जिस जमाल पर

ले चल कहीं भी आरज़ू लेकिन ज़बान दे
हरगिज़ न ख़ून रोएगी अपने मआल पर

ऐसे मकान से तो यहाँ बे-मकाँ भले
है इंहिसार जिस का महज़ एहतिमाल पर

'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए
रो लेने दे अकेला मुझे अपने हाल पर